अविनाश वाचस्पति एक ऐसे सृजनधर्मी का नाम है जिसे हिंदी ब्लॉग जगत सर आँखों पर विठाता है । १४ दिसम्बर १९५८ में जन्में श्री अविनाश वाचस्पति ने सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है , परंतु व्यंग्य, कविता, बाल कविता एवं फिल्म पत्रकारिता प्रमुख हैं । इनकी रचनाएँ देश-विदेश से प्रकाशित लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है । जिनमें नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, सुमन सौरभ, दिग्विजय, स्क्रीन वर्ल्ड इत्यादि उल्लेखनीय हैं । इंटरनेट पत्रिकाओं : अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज इत्यादि में प्रमुखतः व्यंग्य और कवितायें प्रकाशित हैं । अनेक चर्चित काव्य संकलनों - हास्य कवि दरबार, हास्य कवियों की व्यंग्य बौछार, तरुण तरंग, सागर से शिखर तक, नव पल्लव, हास्यारसावतार इत्यादि में कविताएँ संकलित है । हरियाणवी फीचर फिल्मों ’गुलाबो’, ’छोटी साली’ और ’जर, जोरू और जमीन’ में प्रचार और जन-संपर्क तथा नेत्रदान पर बनी हिन्दी टेली फिल्म ’ज्योति संकल्प’ में सहायक निर्देशक हैं ।ये राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद् और हरियाणवी फिल्म विकास परिषद् के संस्थापकों में से एक हैं । सामयिक साहित्यकार संगठन, दिल्ली तथा साहित्य कला विकास मंच, दिल्ली में उपाध्यक्ष और केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद् के शाखा मंत्री रहे, वर्तमान में आजीवन सदस्य हैं । सर्वोदय कन्या विद्यालय नंबर २, पूर्वी कैलाश, नई दिल्ली में अभिभावक शिक्षक संघ में सचिव व उप-प्रधान रहे हैं ।’साहित्यालंकार’ और ’साहित्य दीप’ उपाधियों से सम्मानित हैं । वर्ष २००० में ’राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान से सम्मानित हैं । इन्हें कादम्बिनी में चित्र और रचना में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है । विगत वर्ष इन्हें परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण के अंतर्गत वर्ष के आदर्श चिट्ठाकारों में शामिल किया जा चुका है ।



नुक्कड़ , तेताला , बगीची , झकाझक टाइम्स , पिताजी , आदि इनके चर्चित ब्लॉग है ......प्रस्तुत है हिंदी ब्लोगिंग से संवंधित विभिन्न पहलुओं पर लोकसंघर्ष पत्रिका के दिल्ली स्थित ब्यूरो चीफ श्री मुकेश चन्द्र से हुई  उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-



(१) आपकी नज़रों में साहित्य-संस्कृति और समाज का वर्त्तमान स्वरुप क्या है?

साहित्‍य-संस्‍कृति और समाज का वर्तमान स्‍वरूप अनेक मायनों में बेहतर है और कई मायनों में बदतर है और ऐसा सदा ही होता है। कुछ चीजें सदैव अतीत की उत्‍तम प्रतीत होती हैं जबकि कुछ निरर्थक यानी कूड़ा। पर यह सब देखने उपयोग करने वाले और महसूसने वाले की नजर पर अधिक निर्भर होता है और तय होता है तत्‍कालीन स्थितियों और परिस्थितियों पर। वर्तमान में इसमें ब्‍लॉगिंग की भूमिका भी दिखलाई दे रही है। पहले जो अपनापन समाज में मौजूद रहा है, वो उस समय की साहित्‍य और संस्‍कृति में समाहित मिलता है परन्‍तु आज की स्थिति जैसी है, उसे वर्णन करने की जरूरत नहीं है। सब उसकी असलियत से परिचित हैं। फिर भी ब्‍लॉगिंग के आने से अजनबी संबंधों में गहन मधुरता आ रही है जबकि ब्‍लॉगिंग पर यह आरोप इसके आरंभ होने से ही लगने लगे हैं कि इससे साहित्‍य-संस्‍कृति और समाज में उच्‍श्रंखलता बढ़ रही है। पर मैं इसका विरोध करता हूं। सदैव तकनीक अपने साथ दोनों पक्ष लेकर चलती है। अब आप जिस तरह का चश्‍मा पहन कर देखेंगे, आपको तो वैसा ही दिखलाई देगा।


(२) हिंदी ब्लोगिंग की दिशा दशा पर आपकी क्या राय है ?


हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की दशा समाज से बेहतर को निकाल कर और अपने साथ लेकर बेहतरीन की ओर अग्रसर है जिससे समाज और ब्‍लॉगिंग की दिशा अपनेपन के प्रचार प्रसार में मुख्‍य भूमिका निभा रही है। इसका एक अहसास आप रोजाना कहीं-न-कहीं आयोजित हो रहे ब्‍लॉगर मिलन के संबंध में जारी की गई पोस्‍टो में महसूस कर सकते हैं और इसका सकारात्‍मक और स्‍वस्‍थ असर आप शीघ्र ही समाज पर महसूस करेंगे।


(३) आपकी नज़रों में हिंदी ब्लोगिंग का भविष्य कैसा है ?


जैसा कि मैंने इससे पहले बतलाया है कि और फिर से कहूंगा कि जो भी विधा या तरीका समाज में बेहतरीन और सकारात्‍मकता की अभिवृद्धि में संलग्‍न है, उसका भविष्‍य निस्‍संदेह आलोकमय है। इसके उज्‍ज्‍वल भविष्‍य को लेकर मेरे मन में तनिक सी भी शंका नहीं है। इसमें हिंदी और हिंदी ब्‍लॉगिंग दोनों का भविष्‍य अपने वर्तमान को बेहतर करते हुए नित नए पायदानों की ओर अग्रसर है।


(४) हिंदी के विकास में इंटरनेट कितना कारगर सिद्ध हो सकता है ?


अब तक जो कार्य सिर्फ हिन्‍दी फिल्‍मों और उनके गानों के भरोसे बढ़ रहा था उसमें इंटरनेट के आने से और हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के विस्‍तार से भरपूर इजाफा हुआ है। हिन्‍दी फिल्‍मों की पहुंच तो बढ़ी ही है। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के आरंभ होने से हिन्‍दी में अभिव्‍यक्ति की सुविधा इंटरनेट के माध्‍यम से ही तो संभव हो पाई है। आज अगर इंटरनेट को जीवन से अलग करके देखा जाए ... वैसे ऐसा करके देखना संभव नहीं है। हिन्‍दी और आपसी संबंधों के स्‍वस्‍थ विकास में इंटरनेट पूरी तरह सक्षम है। पर फिर भी मैं जोड़ना चाहूंगा कि अपवाद प्रत्‍येक क्षेत्र में होना अवश्‍यंभावी हैं। जब तक बुराई नहीं होगी आप अच्‍छाई को महसूस नहीं कर सकते हैं।


(५) आपने ब्लॉग लिखना कब शुरू किया और उस समय की परिस्थितियाँ कैसी थी ?


मैंने नियमित रूप से ब्‍लॉग लेखन वर्ष 2007 में कादम्बिनी पत्रिका में बालेन्‍दु दाधीच के आलेख ‘ब्‍लॉग हो तो बात बने’ से, इंटरनेट पर हिन्‍दी में लिखने की सुविधा और ब्‍लॉगों की सक्रियता की जानकारी होने पर किया। उस समय मैंने अपना दूसरा ब्‍लॉग बगीची बनाया। पहला ब्‍लॉग तेताला संभवत: मैं इससे कई वर्ष पूर्व बना चुका था परंतु उस समय मुझे इसकी अधिक क्‍या थोड़ी-सी भी जानकारी नहीं हो पाई थी। सिर्फ रोमन हिन्‍दी में उसमें यह लिखा कि कोई मुझे पहचान रहा है, या कोई मुझे जान रहा है। इस तरह की दो-तीन एक दो लाईन की पोस्‍टें लगाई थीं परंतु कोई रिस्‍पांस न पाकर वो वहीं रह गया और उसे मैं भूल गया परन्‍तु जब बगीची ब्‍लॉग बनाया और आरंभ किया तो उसमें तेताला को भी डेशबोर्ड पर पाया।
जब हिन्‍दी में लिखा भी गया और उस समय के एग्रीगरेटर्स नारद और चिट्ठाजगत की जानकारी हुई और लिखे गए पर प्रतिक्रियाएं भी मिलीं तो खूब अच्‍छा लगा। फिर धीरे-धीरे मैं इसमें जुड़ता चला गया। तब भी मैं एक दिन में एक या दो पोस्‍टें अवश्‍य लगाता था और अब तो खैर गिनती ही नहीं है क्‍योंकि 6 ब्‍लॉग हैं जिनमें 3 सामूहिक कर लिए हैं और नुक्‍कड़ की वेबसाइट पर कार्य चालू है। इसमें देश-विदेश के तकरीबन 96 प्रतिष्ठित और नए लेखक भी जुड़े हुए हैं।
तब हिन्‍दी में लिखने के लिए रवि रतलामी जी के किसी रोमन से हिन्‍दी लिखने वाले औजार पर लिखकर कॉपी करके ब्‍लॉग में पेस्‍ट और प्रकाशित करता था और जब बाद में हिन्‍दी टूल किट की जानकारी हुई तो तभी से परिस्थितियों ने ऐसा मोड़ लिया जैसा कि वाहन पहले गियर में चलाया जा रहा हो और जब टॉप गियर में आ जाए तो उसकी गति तो कोई भी महसूस कर सकता है तो अब मेरा ब्‍लॉग लेखन बिल्‍कुल टॉप गियर में है और मुझे कभी इसका गियर कम करने की जरूरत महसूस नहीं होती है।
नि:संदेह आज की परिस्थितियां तब से बहुत बेहतर हैं और आने वाले कल में बेहतरीन होती जा रही हैं।

(५) आप तो स्वयं साहित्यकार हैं, एक साहित्यकार जो गंभीर लेखन करता है उसे ब्लॉग लेखन करना चाहिए या नहीं ?

साहित्‍यकार का कोई वजूद बिना पाठक के नहीं है। सिर्फ खुद ही लिखें और अपने लिखे को पढ़ें तो आप कैसे साहित्‍यकार हो सकते हैं और न ही इस प्रक्रिया का कोई लाभ है बल्कि आपके लिखे पर पाठक की प्रतिक्रिया प्राप्‍त हो तो लिखने का जैसे मजा ही दूना और लिखने की गति सौगुनी हो जाती है। पाठकों से आपस में संवाद की स्थिति गंभीर लेखन को भी जन-जन से जोड़ते हुए जनहित की ओर अग्रसर करती है, मेरा ऐसा मानना है। साहित्‍यकार को निश्चित तौर पर ब्‍लॉग लेखन करना चाहिए। इसकी पुष्टि आप प्रख्‍यात साहित्‍यकारों के ब्‍लॉग से कर सकते हैं। वे चाहे रोज अपने ब्‍लॉग पर पोस्‍ट न लगाते हों और टिप्‍पणियां तो यदा कदा ही करते हैं परंतु इस तकनीक के आकर्षण से बचे हुए नहीं हैं। उन्‍हें भी अपने लेखन पर प्राप्‍त प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहता है और इससे लेखन में निखार ही आता है।
मेरे पास भी अब तो यह स्थिति है कि शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब किसी नए पाठक का फोन न आता हो या लिखचीत (चैट) न होती हो और यह संवाद इंटरनेट के जरिए ही कायम हुआ है। ई मेल और टिप्‍पणियां तो खैर मिलती ही हैं। जिनसे एक बार संवाद शुरू हो गया तो मेरी कोशिश सदा यही रहती है कि इसमें व्‍यवधान न आए और मेल अथवा फोन के जरिए संपर्क बना रहे तथा वे ब्‍लॉग लेखन से जुड़ जाएं। कितने ही पाठकों को मैंने ब्‍लॉग लेखन में प्रवृत्‍त किया है, कितने ही लेखकों को उनके ब्‍लॉग बनाने में सहायक बना हूं और अब भी चाहे किसी का भी फोन आए अथवा कहीं किसी की टिप्‍पणी नजर आए कि किसी को हिन्‍दी टाइप करने अथवा ब्‍लॉग बनाने में कठिनाई अथवा किसी भी प्रकार की कोई जिज्ञासा है तो मैं स्‍वयं आगे बढ़कर सहायता करता हूं। इसमें दूरी कोई मायने नहीं रखती। बस आपके मन में एक जज्‍बा होना चाहिए सबसे मिलकर और साथ लेकर चलने का, साहित्‍य की बेहतरी भी मुझे तो इसी में नजर आती है।

(६) विचारधारा और रूप की भिन्नता के वाबजूद साहित्य की अंतर्वस्तु को संगठित करने में आज के ब्लोगर सफल हैं या नहीं ?

अभी चाहे ब्‍लॉगिंग के शैशव काल में उतने सफल नहीं भी हैं तब भी निराश होने जैसी स्थिति भी नहीं है क्‍योंकि आप देखिए प्रिंट मीडिया ब्लॉग में प्रकाशित अच्‍छी सामग्री को अपने समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित स्‍थान दे रहे हैं। दैनिक जनसत्‍ता के संपादकीय पेज पर एक पोस्‍ट ही उनके समांतर स्‍तंभ में प्रकाशित हो रही है जो कि सप्‍ताह में कुल छह ही होती हैं परन्‍तु उसकी उत्‍कृष्‍टता में तनिक भी संदेह नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त भी अब तो बहुत सारे समाचार पत्र-पत्रिकाएं अपने प्रकाशनों में ब्‍लॉग प्रकाशन को नियमित और महत्‍वपूर्ण स्‍थान दे रहे हैं।
आप साहित्‍यकार उदय प्रकाश, दिविक रमेश, प्रताप सहगल, प्रेम जनमेजय, सूरज प्रकाश, सुभाष नीरव, बलराम अग्रवाल, रूपसिंह चंदेल, पवन चंदन कुछ नाम ही ले रहा हूं, इनके ब्‍लॉग देखते ही होंगे, उन्‍हें देखकर आपको अपने प्रश्‍न का सकारात्‍मक उत्‍तर मिलेगा। साहित्‍यकारों की यही प्रवृत्ति अब ब्‍लॉगरों में भी दिखलाई दे रही है जो कि इस क्षेत्र में ब्‍लॉगरों की सफलता को दिखला रही है।

(७) आज के रचनात्मक परिदृश्य में अपनी जड़ों के प्रति काव्यात्मक विकलता क्यों नहीं दिखाई देती ?
आजकल जीवन इतना कठिन हो गया है कि जड़ों से जुड़ाव ही टूट – बिखर रहा है। अपना पेट-परिवार पालने के प्रश्‍न से निजात मिले तो रचनाकार इससे बचे इसलिए ऐसे में काव्‍यात्‍मक विकलता का अभाव तो होगा ही। यह जीवन में प्रौद्योगिकी के आने से भी हुआ है परन्‍तु परिवर्तन तो अवश्‍यंभावी हैं। बिना परिवर्तन के तो श्रेष्‍ठ साहित्‍य की रचना भी संभव नहीं है। सभी स्थिति-परिस्थिति का होना जरूरी है जैसे सिर्फ सुख से ही काम नहीं चल सकता दुख भी चाहिए ही। तो इसी तरह सब हो रहा है।


(८) आपकी नज़रों में साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार क्या होना चाहिए ?

साहित्यिक संवेदना का मुख्‍य आधार तो मानवता, ईमानदारी निश्चित तौर पर है परन्‍तु अगर बेईमानी, क्षुद्र स्‍वार्थ इत्‍यादि विसंगतियां नहीं होंगी तो इनका भी कोई मूल्‍य नहीं रह जाएगा। इसलिए इन्‍हीं सबको देख समझ कर भी साहित्‍य रचना की जाती है। सभी जगह यह आवश्‍यक नहीं है कि सब कुछ भोगा हुआ ही हो। वैसे भोगे हुए यथार्थ पर लिखी गई रचना का कोई मुकाबला ही नहीं है परन्‍तु कल्‍पना और देखने-समझने-महसूसने की उपयोगिता भी कम नहीं है। इन सबसे मिलकर ही संवेदनाएं परिष्‍कृत होकर साहित्‍य में रूप ग्रहण करती हैं, अब विधा चाहे कोई भी हो।


(९) आज की कविता की आधुनिकता अपनी देसी जमीन के स्पर्श से वंचित क्यों है ?

जहां-जहां देसी जमीन का स्‍पर्श दिखलाई देता है वो तन-मन को निश्चित ही आलोडि़त और झंकृत कर जाता है। पर अब देसी जमीन ही नहीं है जो है भी वो भी पूरी तरह व्‍यावसायिक हो चुकी है। जिसके पास है भी वो कैरियर के चलते उसे छोड़ने को विवश है। फिर भी देसी जमीन आज भी कविताओं में अपनी भरपूर शिद्दत से मौजूद है। इसका औसत निश्‍चय ही कम हुआ है जबकि मिसाल के लिए आप कवि दिविक रमेश के ‘गेहूं घर आया है’, सुरेश यादव के ‘चिमनी पर टंगा चांद’, लालित्‍य ललित के ‘इंतजार करता घर’, मोहन राणा के ‘धूप के अंधेरे में’ जैसी पुस्‍तकों की कविताओं में बिना तलाशे पा सकते हैं। पर यह स्थिति और 30 साल बाद नहीं होगी। तब देसी के स्‍थान पर विदेसी जमीन का स्‍पर्श ही सब जगह मौजूद मिलेगा।


(१०) क्या हिंदी ब्लोगिंग में नया सृजनात्मक आघात देने की ताक़त छिपी हुई है ?

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्‍कुल ठीक नहीं है। जल्‍दी ही यह मीडिया का सबसे ताकतवर माध्‍यम बनने वाला है। फिर बाकी सभी माध्‍यमों की गिनती इनके बाद ही की जाया करेगी। इसमें सीधे कहने वाला कहता है जिससे इसकी विश्‍वसनीयता बढ़ रही है। जहां विश्‍वास होता है वहां सृजन भी आह्लादकारी होता है। आप सिर्फ 15 बरस बाद हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को सर्वोत्‍तम रूप में देख पाएंगे, ऐसा मेरा आकलन है।

(११) कुछ अपनी व्यक्तिगत सृजनशीलता से जुड़े कोई सुखद संस्मरण बताएं ?

देखिए अनुभव दुखद भी होंगे तो उनसे भी नए रचनात्‍मक आयाम ही विकसित होंगे। उन सभी स्‍मृतियों को मैं सदा सुखद पाता हूं जब भी मेरी किसी भी रचना का प्रकाशन होता है और उस पर सिर्फ प्रशंसा नहीं, आलोचना और एक नई दिशा मुझे मेरे पाठक और हितचिंतक बतलाते हैं। जबकि इसके उलट तारीफ तो सभी को अच्‍छी और सुखद लगती है परंतु वो आपके विकास के द्वारों पर ताला लगाने का काम करती है। जब भी मेरी भेजी गई रचना किसी समाचार पत्र अथवा पत्रिका विशेष में प्रकाशित नहीं होती है तो मुझे उसके अनछुए पहलुओं के बारे में ब्‍लॉग में प्रस्‍तुत करने पर मेरे पाठक दे देते हैं और वे क्षण मेरे लिए सर्वदा सुखद ही रहे हैं। जिससे मुझे कई बार यह भी अंदाजा हो जाता है कि मेरी रचना में क्‍या कमियां रही हैं ?

(१२) कुछ व्यक्तिगत जीवन से जुड़े सुखद पहलू हों तो बताएं ?

व्‍यक्तिगत जीवन में सभी पहलू सुखद ही होते हैं यदि आपकी अपेक्षाएं आपके पास मौजूद से कम होंगी और अगर उनसे अधिक की आपकी चाहना होगी तो किसी भी पहलू को दुखद होने से रोका नहीं जा सकता। जबकि मेरे जीवन के वे सभी पहलू सुखद हैं जब मैं किसी भी स्‍तर पर अपने को किसी अनजाने की मदद में भी मन से प्रवृत्‍त पाता हूं और इसी में सबको सुख की तलाश करनी चाहिए बल्कि तलाश करनी नहीं पड़ेगी। आपके पास इतना अधिक सुख हो जाएगा। जितना सुख देने में है, कभी पाने में नहीं है – यही मेरे जीवन का मूलमंत्र है।

(१३) परिकल्पना ब्लॉग उत्सव की सफलता के सन्दर्भ में कुछ सुझाव देना चाहेंगे आप ?

परिकल्‍पना ब्‍लॉग उत्‍सव की परिकल्‍पना अपने नाम के विपरीत परियों की कल्‍पना नहीं है बल्कि इसमें जो कल्‍पनाएं की गई हैं, वे सब सच्‍चाईयों और यथार्थ के रूप में सामने आएंगी और हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के भविष्‍य को पुख्‍ता करेंगी। इससे प्रेरणा प्राप्‍त करके इसी प्रकार की और भी परियोजनाएं शुरू होंगी अभी तो यह शुरूआत है, आगे आगे देखते चलिए, हम खुद भी इसकी अद्भुत सफलताओं को देखकर अचंभित रह जाएंगे। अभी तो इसको सिर्फ एक स्‍पांसर मिला है, देखते जाइये प्रत्‍येक ब्‍लॉगर नेक हृदय और विचारों के साथ इसमें जुड़कर अपनी संपूर्ण सृजनात्‍मकता की आहुति इसमें डालेगा और यह परिकल्‍पना एक हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के महायज्ञ का सुफल प्रदान करेगी।

(१४)नए ब्लोगर के लिए कुछ आपकी व्यक्तिगत राय ?
मेरा अभी भी यह मानना है कि ब्‍लॉगरों को सामूहिक ब्‍लॉग से जुडकर अनुभव लेना चाहिए। अपनी शक्ति को कम करने नहीं तौलना चाहिए। जैसा कि आजकल कुछ ब्‍लॉगरों के मन में यह चिंता हो रही है कि सामूहिक ब्‍लॉग से जुड़ने से आपकी अपनी व्‍यक्तिगत पहचान गायब हो रही है। ऐसा कुछ नहीं है, कुछ दिन आपको अवश्‍य ऐसा महसूस होगा परन्‍तु उसके बाद आपकी पहचान आपकी सृजनात्‍मकता के मिलकर जो उछाल मारेगी, वो सब बीते गए अनुभवों का खामियाजा भी भरेगी। बस आप नेक भावना के साथ आप सबमें अपने को महसूस करते चलिए। किसी भी नए ब्‍लॉगर को सीखने के लिए अगर ब्‍लॉग की जरूरत हो तो मैं अपने ब्‍लॉग से नि:संकोच उन्‍हें जोड़ने के लिए तैयार हूं। हम विश्‍वास देंगे तो हमें विश्‍वास ही मिलेगा।
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56 comments:

प्रमोद ताम्बट ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 12:57 pm बजे

ब्लॉगिंग में तो बहुत ताकत है मगर क्या ब्लॉगरों में उसके सही इस्तेमाल की ताकत है, इस प्रश्न पर भी संजीदगी से विचार किया जाना चाहिए।

प्रमोद ताम्बट
भोपाल

रश्मि प्रभा... ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 1:54 pm बजे

अविनाश वाचस्पति जी के विषय में भी कुछ कहना आसान नहीं, एक गहन व्यक्तित्व के स्वामी हैं और हर विषय पर अच्छी पकड़ है, साक्षात्कार के दरम्यान बहुत सी गूढ़ बातें कही हैं, जिस पर विचार करना आवश्यक है

अविनाश वाचस्पति ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 2:42 pm बजे

भाई प्रमोद जी की राय से इत्‍तेफाक रखता हुआ कहूंगा कि कतिपय दिग्‍भ्रमित ब्‍लॉगरों को ताकत प्रदान करने की जिम्‍मेदारी हमारी ही बनती है पर वे इसे स्‍वीकारें और मानें, इस प्रकार के प्रयास किए जाने आवश्‍यक हैं।
रश्मि जी आप जिन्‍हें गूढ़ बातें बतला रही हैं, उन पर आपके विचारों का स्‍वागत है और मुझे आपके ब्‍लॉग पर उस पोस्‍ट और उन विचारों का इंतजार रहेगा, जिन पर विचार किया जाना चाहिए।

Satish Saxena ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 3:39 pm बजे

अविनाश जी वरिष्ठ ब्लागर होने के साथ साथ बढ़िया दिल के मालिक भी हैं और उनसे हम जैसे नौसिखियों को बहुत अपेक्षाएं भी हैं !अधिकतर ब्लागर्स में साहस की और ईमानदारी की बेहद कमी खलती है ! अविनाश भाई आपके संगठन बनाने के प्रयास में प्रगति बनाये रखिये ! हार्दिक शुभकामनायें !

उपदेश सक्सेना ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 3:41 pm बजे

यह ब्लोगिंग से ज्यादा हिंदी की ताकत है जिसने नए जरिये के रूप में सभी राष्ट्रभाषा प्रेमियों को एक नेट से जोड़ दिया है. हिंदी को ताकत मिलेगी तो यह नया प्लेटफार्म ज्यादा मज़बूत होकर उभरेगा. अब तक हमें अभिव्यक्ति की आजादी कहने भर को थी, मगर एक पत्रकार के रूप में मेरा ऐसे कई मौकों से साबका पड़ा है, जब मेरे पास पुख्ता जानकारी होने के बावजूद किसी “मीडिया कुबेर” के हाथों मेरी खबर,मेरे विचारों की भ्रूण ह्त्या हुई, या कई बार मुझे न चाहकर भी वह लिखना पड़ा जिसे लिखने को मेरा दिल गवारा नहीं करता था. अब इस बात का संतोष है कि मेरे शब्द, मेरी अभिव्यक्ति कभी मर नहीं सकेंगे. शायद कहीं ऊपर वाला है ज़रूर, जिसने हिंदी और उसके प्रेमियों के लिए इस तरह का अमूल्य मंच तैयार किया है. विदेशी तो देश छोड़ने के लिए ही होते हैं, चाहे वह मानव हों या भाषा, काम अंत में घर का ही आता है चाहे वह भी मानव हों या भाषा.

alka sarwat ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 3:58 pm बजे

क्या गजब का इंटरव्यू है
अविनाश भैया के जलवे तो ब्लॉग जगत में, सचिन ,अमिताभ के जलवे जैसे हैं
जितना प्रोत्साहन ब्लागिंग को उन्होंने दिया है ,वह ब्लागिंग के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा

vandana gupta ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 4:13 pm बजे

अविनाश जी के जीवन के काफ़ी पहलुओं के बारे मे जानकारी मिली।उनके जैसा विशाल व्यक्तित्व अपने आप मे सभी ब्लोगर्स के लिये प्रेरणास्तोत्र है…………उनके लिये कुछ कहना तो सूरज को दिया दिखाना होगा । हम तो खुद उनसे सीख रहे हैं।

कडुवासच ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 4:23 pm बजे

"...हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्‍कुल ठीक नहीं है। जल्‍दी ही यह मीडिया का सबसे ताकतवर माध्‍यम बनने वाला है। फिर बाकी सभी माध्‍यमों की गिनती इनके बाद ही की जाया करेगी..."
...आप से पूर्णत: सहमत हूं!!!

मयंक ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 4:29 pm बजे

जिनती बड़ी ताकत...उतना ही अनुशासन और ज़िम्मेदारी भी होती है....और सारे ब्लॉगर साथियों को ये समझना ही होगा....बाकी हिंदी का भविष्य इस पर वाकई निर्भर करता है कि इंटरनेट पर इसके पाठक बड़ रहे हैं या नहीं...क्योंकि भविष्य का मीडिया यही है...और भविष्य को वर्तमान बनते देर नहीं लगती है...
वाचस्पति जी जैसे सरल ह्रदय लोग मैंने कम ही देखे हैं...उनमें वाकई एक अग्रज की छवि देखता हूं....

Ashok Chakradhar ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 4:38 pm बजे

बधाई अविनाश जी। आपके साक्षात्कार की सबसे बड़ी ताक़त है ब्लॉगिंग के प्रति आपका सकारात्मक दृष्टिकोण।

Unknown ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 4:59 pm बजे

ब्लॉगिंग में तो बहुत ताकत है मगर ... विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ब्लॉग ने प्रदान की है। संपादक महोदय की कृपा दृष्टी पर अब हमारा साहित्य प्रकाशित होना या न होना निर्भर नहीं रहेगा। प्रमोद तांबट जी सही कहा है कि ब्लॉगिंग में तो बहुत ताकत है मगर क्या ब्लॉगरों में उसके सही इस्तेमाल की ताकत है, इस प्रश्न पर भी संजीदगी से विचार किया जाना चाहिए। इसके साथ साथ ब्लॉग के नई तकनीक की जानकारी भी रखनी चाहिए। ब्लॉग की समीक्षा भी समय समय पर प्रकाशित हो जाए तो हमें कोई नई दिशा मिल सके। क्या हिंदी ब्लॉगिंग की समीक्षा पर कोई ब्लॉग है?

Himanshu Pandey ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 5:40 pm बजे

अविनाश जी की सर्जनात्मक ऊर्जा ब्लॉगजगत को सदैव ही सकारात्मक ढंग से देखती आयी है ! एक साथ इतने ब्लॉग्स पर सक्रियता, साथ ही अन्य माध्यमों में भी सजग हस्तक्षेप - इन्हें महनीय बनाता है !

अविनाश जी हम जैसे ब्लॉगरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं ! बहुआयामी रचनाधर्मिता से चमत्कृत करते रहते हैं हमें !

यह साक्षात्कार भी इनकी इसी सकारात्मक दृष्टि का प्रतिबिम्ब है ! सधे हुए ढंग से अभिव्यक्त हुआ है सबकुछ !
इस साक्षात्कार की प्रस्तुति का आभार !

Unknown ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 7:04 pm बजे

गज़ब का साक्षात्कार...............

गज़ब की वैयक्तिक मेधा

और गज़ब का समर्पण हिन्दी ब्लोगिंग के प्रति........

सिर्फ एक शब्द काफी है - लाजवाब !

- अलबेला खत्री

rashmi ravija ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 7:09 pm बजे

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अविनाश जी ने साक्षात्कार के दौरान ब्लॉग्गिंग के हर पहलू पर प्रकाश डाला है. प्रत्येक ब्लॉगर उनके विचारों से लाभान्वित हो सकता हैं.
ब्लॉग्गिंग के प्रति उनका समर्पण, उनकी सक्रियता और नए ब्लोगर्स के उत्साहवर्द्धन करने के उनके प्रयास की प्रशंसा के लिए शब्द कम पड़ते हैं.
ब्लॉग्गिंग को एक नए मुकाम पर ले जाना उनका मुहिम बन गया है. इस मुहिम में जितना भी सहयोग अपेक्षित हो..हमें जरूर करना चाहिए.
बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार,उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व से परिचित करवाता हुआ.

Unknown ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 8:15 pm बजे

ब्लॉगिंग खासतौर से हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं में ब्लॉगिंग का आने वाला कल वाकई बेहतर भी होगा और आर्थिक रूप से सक्षम भी। अविनाश जी का ये साक्षात्कार मेरी इस धारणा को और पुष्ट करता है, हिंदी के ब्लॉगरों ने छिटपुट रूप से ही सही लेकिन जिस तरह ब्लॉगिंग को सामाजिक अवधारणा से जोड़ने के प्रयास किए हैं, वो वाकई प्रशंसा योग्य हैं। अविनाश जी जैसे कर्मयोगी ही इस गंगोत्री को गंगा बनाने वाले भागीरथी सिद्ध होंगे। मेरी शुभकामनाएं।

डॉ महेश सिन्हा ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 8:54 pm बजे

ब्लागिंग एक सशक्त माध्यम है इसमे दो राय नहीं हो सकती .
यह बात अलग है की इसका उपयोग कैसे किया जाता है .जहाँ काम आए सुई क्या करे तलवार .
आज विश्व में समाचार के रूप में इंटरनेट ने सबसे बड़े माध्यम की जगह ले ली है . ब्लाग ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में बहुत अहम रोल निभाया है .
इसे हिन्दी से और बढ़ाकर भारतीय रूप दिया जा सके तो इससे बड़ा माध्यम इस देश में कोई नहीं होगा .

अविनाश जी के बारे में कुछ कहना , जितनी मेरी जानकारी है, सूरज को दिया दिखाना होगा .

श्रद्धा जैन ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 9:30 pm बजे

Main Alka ji se sahamat hun
Avinash ji hamari blogging ke sachin hai :-)

unke vichar padhna unka interview padhna achcha laga......

Gyan Dutt Pandey ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 9:38 pm बजे

बहुत सुलझा हुआ इण्टरव्यू! यह वही दे सकता है जो बहुत मनन करता हो और व्यक्तित्व में पारदर्शी हो!
धन्यवाद।

chhapsa@gmail.com ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 10:28 pm बजे

बहुत बढ़िया स‌ाक्षात्कार है। अविनाश जी का कहना बिल्कुल स‌ही है कि हिन्दी ब्लॉगिंग की ताकत को कम कर नहीं आंकना चाहिए। ये अब काफी ताकतवर हो चुकी है। ये तो अब कमानेवाली भाषा भी बन गयी है। छपास

नवीन तिवारी " विद्रोही " Naveen Tewari ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 11:05 pm बजे

बहुत बढ़िया इण्टरव्यू है। अविनाश जी बधाई ...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 11:11 pm बजे

नये ब्लॉगर्स का उत्साह बढ़ाना और उन्हे हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिरे मार्गदर्शित करना भी इनका एक मुख्य कार्य है...सबसे बड़ी बात मैं यह कहना चाहूँगा एक अच्छे ब्लॉगर होने के साथ साथ अविनाश जी एक अच्छे इंसान भी है कभी भी कोई समस्या हो सबसे आगे उपस्थित और हर संभव मदद भी....प्रणाम करता हूँ अविनाश जी को...बढ़िया प्रस्तुति....धन्यवाद

बलराम अग्रवाल ने कहा… 26 अप्रैल 2010 को 11:18 pm बजे

अनेक ऐसे सवाल किए गए हैं जिनके उत्तर मुझ जैसा व्यक्ति ढूँढ़ता-सा रहता था। अविनाश जी ने उनके सधे हुए जवाब दिए हैं। स्तरीय बातचीत है और उपयोगी भी।

Udan Tashtari ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 5:00 am बजे

यूँ तो अविनाश जी से काफी वक्त से जुड़ा हूँ किन्तु आज यहाँ उनके विचारों को विस्तार से जानकर विशेष प्रभावित हुआ हूँ.

उनका एक सकारात्मक नज़रिया, अपनेपन का अहसास, सभी को साथ ले कर चलने का जज़्बा हिन्दी ब्लॉगिंग को नये आयाम देता आया है और भविष्य में भी देता रहेगा.

अविनाश जी को बहुत बधाई, साधुवाद एवं अनन्त शुभकामनाएँ.

Asha Joglekar ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 5:55 am बजे

हिंदी ब्लॉगिंग के इतने अनुभवी व्यक्तित्व के अविनाशजी को मैं भी, ब्लॉगिंग के जरिये ही सही, जानती हूँ ये सोच कर अच्छा लगा । इंटरव्यू भी जोरदार है ।

राजकुमार सोनी ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 10:16 am बजे

अविनाश जी मेरे बड़े भाई है। पता नहीं क्यों यह मन करता है कि मैं उनकी हर बात मानता चलूं। अभी उन्होंने मुझे कुछ दिन पहले एक बात समझायी थी, मैं मान गया। जानते हैं क्यों... सिर्फ इसलिए कि मुझे ब्लाग की दुनिया में आएं हुए चार महीने हुए हैं। लेकिन इन चार महीनों में मैं गिरीश पंकज जी और अविनाशजी को ही गंभीर लेखक के तौर पर दस्तक देते हुए देख पाया हूं। कई बार एक आदमी का लिखा पढ़ा ही उसे इस काबिल बना देता है कि लोग उसे सिर आंखों पर बिठा लेते हैं। अविनाश जी वास्तव में इसके हकदार है।
बाकी जय और वीरू को पकड़ने वाले सूरमा भोपाली तो कई है ब्लाग जगत में। अविनाशजी को पढ़कर मैं बहुत कुछ सीखने का प्रयास करता हूं। हां यह बात मैं प्रमाण पत्र देने के लिए नहीं लिख रहा हूं क्योंकि बड़े भाई को कभी छोटा भाई प्रमाण पत्र नहीं दे सकता।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 2:53 pm बजे

ब्लाग जगत में जब मेरा प्रवेश हुआ,तब पहली राम-राम मेरी अविनाश जी से ही हुई थी। आप ब्लाग जगत के निर्विवाद व्यक्तित्व हैं। आपका स्नेह हमेशा मुझे मिलता रहा है। कठिन से कठिन परिस्थियाँ हो या कोई अवरोध हो, आपने हमेशा मार्गदर्शन कर मेरा संबल बढाया है।

आज आपके विचार जानकर अभिभुत हुँ, कोई सुलझा हुआ चिंतक ही इस तरह के श्रेष्ठ विचार रख सकता है। नि:संदेह ही हिंदी में ब्लागिंग का अपना एक अलग स्थान होगा।

राम राम

दीनदयाल शर्मा ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 3:40 pm बजे

अविनाश जी, आपका साक्षात्कार पढ़ा...बहुत अच्छा लगा..ब्लॉग से हम पूरी दुनिया से जुड़ जाते हैं.. हम अपने विचारों को एक दूसरे तक तत्काल पहुंचा सकते है..यह कितनी अच्छी बात है..ब्लॉग में अब तो रचनाकारों और पाठकों का जाल बना हुआ है...पाठक संख्या भी अब बढ़ रही है..अच्छी रचनाओं का लोग दिल से स्वागत करते है..और उस लेखक से और भी अच्छी अच्छी रचनाओं की अपेक्षा करते हैं..ब्लोगर को ईमानदार होना ज़रूरी है...तभी कड़ी आगे
बढती है...मेरी शुभकामनाएं...

ANJAN ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 7:38 pm बजे

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्‍कुल ठीक नहीं है। जल्‍दी ही यह मीडिया का सबसे ताकतवर माध्‍यम बनने वाला है। फिर बाकी सभी माध्‍यमों की गिनती इनके बाद ही की जाया करेगी..."
...आप से पूर्णत: सहमत हूं!

रजनीश ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 8:00 pm बजे

आदरणीय अविनाश वाचस्पति जी हिन्दी साहित्य सेवी के साथ-साथ अच्छे अभिभावक तथा बेहद संवेदनशील इंसान हैं।

Dr. Shashi Singhal ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 8:17 pm बजे

अविनाशजी , बिल्कुल सही कहते हैं कि हिन्दी ब्लॉगिंग की ताकत कम नहीं आंकी जानी चाहिए । और फिर जहां अविनाशजी हों वहां तो हिन्दी ब्लॉगर किसी भी तरह कम नहीं है । मैं समझती हूं कि नए - नए ब्लॉगरों को जो प्रोत्साहन व बढावा अविनाशजी से मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता । मैने भी बालेन्दु दधीचिजी के आलेख ‘ब्‍लॉग हो तो बात बने’ से प्रेरित होकर अपना हिन्दी ब्लॉग बनाया था । सच कहूं तो बालेन्दु जी ने हिन्दी ब्लॉग का प्रचार - प्रसार किया लेकिन अविनाशजी इसे बढाने में कोई कसर नहीं रखते । हिन्दी ब्लॉगिंग से संबंधित कोई भी समस्या हो , वह चाहे तकनीकी ही क्यों न हो , उसे हल करने में बहुत मदद करते हैं ।
आज अविनाशजी की मेहनत का ही नतीजा है कि दूर - दूर बैठे व एकदूसरे से अंजान ब्लॉगर आपस में मिलबैठ रहे हैं और अपनी एक नई दुनिया ,जहां परस्पर प्रेम , सौहार्द ,भाईचारा व ज्ञान का अथाह भंडार है , बना अनेक ब्लॉग एक हृदय वाली बात सिद्ध कर रहे हैं यूं तो अविनाशजी को मैं पहले से जानती हूं लेकिन उनके गूढ व्यक्तित्व के बारे में विस्तृत जानकारी उनके साक्षात्कार से मिली है । अविनाशजी बधाई के पात्र हैं । अगर यह कहें कि वह आज के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी ब्लॉगिंग के एक मजबूत स्तंभ हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । भई मेरा तो यही मानना है ।

बेनामी ने कहा… 27 अप्रैल 2010 को 11:43 pm बजे

एक गंभीर, सुलझे हुए साक्षात्कार से अविनाश जी के व्यक्तित्व की कुछ और बातें जान पाया
आपका आभार

विष्णु बैरागी ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 12:30 am बजे

स्‍पष्‍ट अवधारणाओंवाला साक्षात्‍कार। मुझ जैसे नए ब्‍लॉगरों को इससे बडी सहायता मिलेगी।
मुझे लगता है कि हिन्‍दी ब्‍लॉग अभी अपनी शैशवावस्‍था में ही है। अभी यह कितना शक्तिशाली है, यह आकलन करना अभी जल्‍दबाजी होगी। मुझे तो लगता है कि इसे निरन्‍तर पुष्‍ट किए जाने की आवश्‍यकता है।

बाल भवन जबलपुर ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 12:33 am बजे

सहज प्रवाह, वाणी में गाम्भीर्य विनोदी भी यानी गुणों की खान हैं भाई अविनाश जो सबका दर्द जानते हैं

बाल भवन जबलपुर ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 12:39 am बजे

जब भी एक भावभरा संत देखना हो
जब भी सहज विचार प्रवाह समझना हो
अविनाश जी को देखिये मिलिए ए सच है चापलूसी नही

Madhukar ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 5:51 am बजे

ब्लॉगिंग ने घर-घर सृजनात्मकता के दरवाज़े खोले हैं। आशु साहित्य की इस विधा ने ऐसे लोगों को बहुत बड़े पैमाने पर आकर्षित किया है जिनके भीतर लिखने पढ़ने को लेकर ज़रा भी जिग्यासा है। ब्लॉगिंग में शक्ति है, मत है। साहित्य की दुनिया में तमाम लेखकों की बीच एक विचार पर मतभेद होते हैं। यही ब्लॉगिंग में भी हो रहा है। ये वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को और मज़बूती प्रदान कर रहा है तथा लोकतंत्र में नए-नए विचारों को समान जगह मिल रही है। प्रिंट मीडिया ने इस विधा को हाथों हाथ लिया है। मुख्य अख़बारों में नियमित ब्लॉग पोस्टों का प्रकाशन किया जा रहा है। मैंने अपने देश में अंग्रेजी ब्लॉगिंग की हालत देखी है। बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं के संपादक पाठक से संवाद को तरस रहे हैं। इससे साबित होता है कि हिंदी वाले बड़ी संख्या में ब्लॉगिंग में सक्रिय हैं। धीरे-धीरे यह विधा एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आएगी।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 6:27 am बजे

अविनाश वाचस्पति जी की सहृदयता का कायल हूँ!
रवीन्द्र प्रभात जी का आभार कि उन्होंने अविनाश वाचस्पति जी के साक्षात्कार को प्रकाशित किया!
मेरा मत भी यही है कि ब्लॉगिंग में बहुत ताकत है!
लेकिन आविनाश जी सरीखे सभी सक्रिय लोग ही
इसको शक्ति प्रदान करते हैं!

अनूप शुक्ल ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 6:56 am बजे

वाह!
अविनाशजी जैसे टॉप गियर वाले ब्लॉगर होने के बावजूद ब्लॉगिंग को खुल के खेलने के लिये १५ साल लग जायेंगे। कुछ कम करिये भाईजी!

साक्षात्कार में सवाल ब्लॉगिंग पर केंद्रित न होकर साहित्य/संस्कृति/कविता की तरफ़ टहल गये!

सामूहिक ब्लॉग की अपनी उपयोगिता है लेकिन मेरी समझ मे ब्लॉगर का एक अपना ऐसा ब्लॉग भी होना चाहिये जिससे ब्लॉगर की अपनी पहचान जुड़ी हो।

चकाचक इंटरव्यू!

निर्मला कपिला ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 9:49 am बजे

अविनाश जी के बारे मे और उनके ब्लागिन्ग के बारे मे विचार जान कर बहुत अच्छा लगा उनकी प्रतिभा को कौन नही जानता। प्रभात जी की मेहनत से हमे बहुत कुछ जानने का अवसर मिल रहा है
अविनाश जी और प्रभात जी को शुभकामनाये धन्यवाद्

Hemant kumar maurya ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 12:04 pm बजे

Your thinking is very good sir, but i think time is modern go very fast. hindi is the queen of any language.......& you are in a right way.
Your thinking is right & also you....this is your good effort.. i don't know much about you. but you are good....

Thankyou

Kirtish Bhatt ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 1:02 pm बजे

निस्संदेह हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना ठीक नहीं है. और ये ताकत अविनाश वाचस्पति जैसे लोगों की बदौलत ही है. जो इमानदारी से ब्लोगिंग में लगे है.
शुभकामनाएं.
जय हिंदी, जय ब्लोगिंग !

vijay kumar sappatti ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 2:49 pm बजे

AVINAASH JI MERE MANPASAND BLOGGERS ME SE EK HAI .. WO JITNE KARMATH HAI UTNE HI HANSMUKH HAI .. WO MERE COMEDY LEKHN KE LIYE MERE GURU BHI HAI .. MERA YE SAUBHAAGYA HAI KI MAI UNSE MILA HOON AUR UNKE BAARE ME AUR ADHIK JAANA HAI ....IS INTERVIEW ME UNHONE BAHUT HI GAMBHEERTA KE SAATH HINDI KE BHAVISH SE JUDE HUE VICHAAR RAKHE HAI , JO KI SWAGAT KE YOGYA HAI ..

MERA ABHAAAR UNHE AUR LOKSANGHARSH PATRIKA KO ..

NAMASKAAR

VIJAY

संगीता पुरी ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 5:04 pm बजे

मैने यह साक्षात्‍कार कल ही पढा था .. पर टिप्‍पणी नहीं कर पायी थी .. बहुत अच्‍छा लगा पूरा का पूरा साक्षात्‍कार .. मैं भी अविनाश जी के विचारों से सहमत हूं कि .. ब्‍लॉगिंग की ताकत को हमें कम करके नहीं आंकना चाहिए !!

M VERMA ने कहा… 29 अप्रैल 2010 को 5:02 am बजे

अविनाश जी सरल और समर्पित व्यक्तित्व हैं. (जितना मैनें जाना है)
पूर्णतया सहमत ब्लागिंग से रचना प्रक्रिया में इजाफा होता है. पाठक विहीन साहित्य (श्रेष्ठ होते हुए भी) को स्वांत: सुखाय के आवरण में रखने से भी मकसद हल तो नहीं होता और फिर ब्लागिंग ने तो चहुआयामी द्वार खोल दिया है.
सुन्दर विचारों से लैस साक्षात्कार

डॉ महेश सिन्हा ने कहा… 29 अप्रैल 2010 को 11:42 am बजे

पता नहीं यह टिप्पणी यहाँ कितनी युक्तिसंगत है .
क्या यह ब्लाग मेला केवल साहित्यकारों का है .

Unknown ने कहा… 29 अप्रैल 2010 को 12:59 pm बजे

ब्लॉगिंग निसंदेह इंसान की वैचारिक ताकत है। साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक ऐसा जरिया है जहां हर कोई अपने विचारों को स्वच्छंद कह सकता है। ये हमारे समाज की बड़ी ताकत बन चुकी है। इसको यूं ही चलते रहना चाहिए। अविनाश दादा कुछ आपके बारे में भी कहना चाहूंगा कि दौड़ती भागती दिल्ली में आपने जो इस डिजिटल लिपि को वक्त दिया है वो वाकई काबिल ए तारीफ है ।

अविनाश वाचस्पति ने कहा… 29 अप्रैल 2010 को 2:00 pm बजे

@ डॉ. महेश सिन्‍हा

जी नहीं,
सबसे पहले यह मेला पाठकों के लिए हैं
उसके बाद हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के लिए है
वे पाठक तो होंगे ही
पाठकों में ब्‍लॉगर भी होंगे
सब साहित्‍यकार बनें, ऐसी कामना रहेगी
वैसे जनसाधारण के लिए है।

सुरेश यादव ने कहा… 29 अप्रैल 2010 को 10:23 pm बजे

अविनाश जी आप का साक्षात्कार ब्लॉग के सम्बन्ध में तमामभ्रांतियों को दूर करने वाला और सकारात्मक है .बधाई.

राजीव तनेजा ने कहा… 29 अप्रैल 2010 को 11:21 pm बजे

हिंदी के विकास एवं प्रसार में ब्लोगिंग के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है...
बढ़िया धीर-गंभीर साक्षात्कार ...

सुनील गज्जाणी ने कहा… 30 अप्रैल 2010 को 11:41 am बजे

avinash jee,
saadar naman , aap ke interview ne bloggging kya hai aur aap ke sandharb me had tak spast kar diya, humre liye gourav ki baat hai ki aap hume blog ke sandharb me mail yaa chat ke dwara bhi gayan vardhan karte rahtehai, vakai aap shasakat blogger ya hi tech personalty hai , kahe to galt nahi hoga. ravendra jee ka bhi aabhar jin hone avinash sir ko aur padhe janne ka avsar pradan kiya ,
aabhar

सुनील गज्जाणी ने कहा… 30 अप्रैल 2010 को 1:56 pm बजे

Saadar Pranaam shree avinash bhai saahab,
Shree Avinash ji bahumukhi pratibhaa hone ke sath-sath bahut helpfull bheehain mujhe bhee kafi jaankariyaan dee jiskaa mujhe labh mila. Aapke is sakshaatkaar se hindi blogging ke sakaaratmak pehloo ke baare me jaanane ka aur adhik avasar mila..aur bahut kuchh jaankaari haasik hui. SADHUWAAD !!

Ashok Kumar pandey ने कहा… 30 अप्रैल 2010 को 10:58 pm बजे

ब्लाग जगत को अविनाश जी का योगदान अतुलनीय है।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा… 1 मई 2010 को 12:17 am बजे

वाह ! हर बार कुछ न कुछ नया जानने को मिलता है. बहुत बढ़िया.

शेफाली पाण्डे ने कहा… 1 मई 2010 को 9:43 pm बजे

sahmat ...avinash ji ka yogdaan vaakai atulneey hai...

रज़िया "राज़" ने कहा… 2 मई 2010 को 4:43 pm बजे

अविनाशजी का इंटर्व्यु पढकर बहोत कुछ सिखने को मिला। उनका कहना सही है कि"हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्‍कुल ठीक नहीं है। जल्‍दी ही यह मीडिया का सबसे ताकतवर माध्‍यम बनने वाला है। "

नये ब्लोगरों को महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं।

हिन्दी ब्लोगिंग हिन्दुस्तान में नहिं बल्कि विश्व में कामयाब रहेगी ये कहना सही होगा।

बढिया पोस्ट। बढिया इंट्ररव्यु।

D.P. Mishra ने कहा… 8 मई 2010 को 10:10 am बजे

अविनाश जी वरिष्ठ ब्लागर होने के साथ साथ बढ़िया दिल के मालिक भी हैं और आज अविनाशजी की मेहनत का ही नतीजा है कि दूर - दूर बैठे व एकदूसरे से अंजान ब्लॉगर आपस में मिलबैठ रहे हैं और अपनी एक नई दुनिया ,जहां परस्पर प्रेम , सौहार्द ,भाईचारा व ज्ञान का अथाह भंडार है अधिकतर ब्लागर्स में साहस की और ईमानदारी की बेहद कमी खलती है ! अविनाश भाई आपके संगठन बनाने के प्रयास में प्रगति बनाये रखिये ! हार्दिक शुभकामनायें !

डा सुभाष राय ने कहा… 24 जुलाई 2010 को 12:20 pm बजे

पहले अविनाशजी का साक्षात्कार और फिर इतनी टिप्पड़ियां पढ
ना, उफ क्या लिखूं, समझिये इन सारी टिप्पड़ियों में जो भी विचार रखे गये हैं, वे सब मेरे हैं.

 
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