नैनीताल निवासी शारदा अरोरा जी एक चार्टर्ड एकाउंटेंट बैंक एक्जीक्यूटिव की पत्नी हैं , साथ ही एक कुशल गृहिणी भी हैं कॉलेज की पढ़ाई के लिए बच्चों के घर छोड़ते ही , एकाकी होते हुए मन ने कलम उठा ली उद्देश्य सामने रख कर जीना आसान हो जाता है इश्क के बिना शायद एक कदम भी नहीं चला जा सकता ; इश्क वस्तु , स्थान , भाव, मनुष्य, मनुष्यता और रब से हो सकता है और अगर हम कर्म से इश्क कर लें ? मानवीय मूल्यों की रक्षा ,मानसिक अवसाद से बचाव उग्रवादी ताकतों का हृदय परिवर्तन यही इनकी कलम का लक्ष्य है ,जीवन के सफर का सजदा है प्रस्तुत है इनकी एक छोटी सी कविता -


!! इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर !!

 
इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर
चुन लाये कुछ उजली किरणें
हुस्न के माथे ताज सजे फ़िर
जन्मों का सारा दुःख भूले

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले

वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले .

()शारदा अरोरा

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2 comments:

Narendra Vyas ने कहा… 28 अप्रैल 2010 को 9:48 pm बजे

एक सार्थक रचना..।।

 
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