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गोपाल जी का पूरा नाम गोपालजी श्रीवास्तव है . ये अवध की माटी में घुले-मिले एक ऐसे रचनाकार हैं जिनकी रचनाओं में माटी की गंध स्पस्ट महसूस की जा सकती है. गोपाल जी वेहद शांत और सहज व्यक्तित्व के मालिक है जैसा गुन वैसी कविता ....प्रस्तुत है इस अवसर पर उनकी दो कविताएँ-
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सरहद, मेरी ख्वाइश


सरहद का नाम सिर्फ़ हो यादों की ज़ुबां पर,
दिल से मिटा के नफरतें छा जायें दिलों पर ,
किस मुल्क के हैं हम, हमें ये होश ही न हो
फौंजों के बच न पायें निशां इस ज़मीन पर ,

बारूद को भी भेदने को शख्स ना मिले ,
तोपों मिसाइलों का कहीं अक्स ना मिले ,
परवरदिगार मेरे नबी इतना रहम कर
इंसानों में ढूंढे से कहीं रश्क ना मिले ,

नक्शे बने, फ़िर सरहदें, फ़िर जीतने की चाह ,
शस्त्रों के अट्टहास ने, रौंदी दिलों की आह,
बेवाओं, अनाथों के, अश्कों की नींव पर
बनते हैं देश , सरहदें और उनके शहंशाह ,

मज़हब की सरहदें तो, ज़मीं से हैं खतरनाक ,
इंसा बना हैवान , हुए अमन-ओ-चमन खाक ,
मज़हब के जुनूं में, हमें ऐ होश ही नहीं
हमने किया उस एक ही मालिक का जिगर चाक ,

हो एक पिता, एक विश्व, एक सरज़मीं ,
फ़िर हो न कभी, किसी घर में युध्ध की गमीं ,
फ़िर दर्द और ग़म का कहीं होगा ना निशां
गर होगा , तो छलकेगी हर एक आंख में नमीं ,

ज़र्रा हर एक तेरा है , फ़िर क्यों नुमाइश है ,
ताक़त तेरी है , हममें नूरा-आज़माइश है ,
मज़हब से , देश , सरहद से बढ़तीं हैं नफरतें
दिल से मिला दे दिल , या रब बस यही ख्वाइश है ,
दिल से मिला दे दिल , या रब बस यही ख्वाइश है ,

कानून का कानून

कानून के हाथ लम्बे होते हैं, इतने......ऐ
कि दू..ऊ.ऊ..र किसी बेगुनाह की
गर्दन तक पहुँच जाते हैं,
और सामने खड़े अपराधी की
गर्दन में माला पहनाते हैं,

कानून में सिर्फ यही तो एक अच्छाई है,
कि उसने अपने पैदा होने की वज़ह
दिल से अपनाई है,
जैसे चिराग तले का अँधेरा
चिराग से ही अस्तित्व में आता है,
और उसी की छत्र-छाया में
चैन की बंसी बजाता है,

सारा जग जानता है
की क़ानून और अपराध का
चोली-दामन का साथ है,
और वास्तव में क़ानून
अपराध की सगी औलाद है,

और वैसे भी संसद में पहुंचा
ज्यादातर अपराधी ही क़ानून बनाता है,
और सिर्फ सीधा-सच्चा नागरिक उसे निभाता है,

क़ानून की रोटी भी अपराध से ही चलती है,
क़ानून के रखवालों की रंगत भी
अपराध के फलने-फूलने से ही निखरती है,
भला बताइए, जिसके ऊपर क़ानून जैसी
सर्वप्रतिष्ठित सुंदरी मेहरबान हो,
क्यों न उसके चेहरे पर चिरजयी मुस्कान हो,
क्यों न उसका बोलबाला हो,
जिसका क़ानून का ऊँचा से उंचा
ओहदेदार हमप्याला हो,
इतिहास गवाह है कि,
कानून सिर्फ अपराधियों की
हिफाज़त के लिए ही जी रहा है,
आज भी, अग्नि-परीक्षित और सच्ची
सीताओं का खून पी रहा है,
गोपालजी 
() () ()
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3 comments:

mala ने कहा… 26 मई 2010 को 8:11 pm बजे

सही व सटीक लगा..बहुत बढिया

गीतेश ने कहा… 26 मई 2010 को 8:14 pm बजे

मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रचना हेतु शुभकामनाएं।

 
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