रेखा श्रीवास्तव आई आई टी , कानपूर में मशीन अनुवाद प्रोजेक्ट में कार्य कर रही हैं  . इस दिशा में हिंदी के लिए किये जा रहे प्रयासों से वर्षों से जुड़ी हैं . अपने बारे में इनका कहना है कि-"मैं बुन्देलखन के एक कसबे उरई की बेटी हूँ. परिवार में पढ़ने और लिखने का माहौल शुरू से ही था. मेरे पापा भी साहित्यिक प्रवृत्ति के थे सो लेखन और पठान दोनों ही विरासत में मिले. बहुत छोटी थी तभी से लेखन शुरू कर दिया और प्रकाशन भी होने लगा. शादी से पहले तक ये कार्य बखूबी चला लेकिन उसके बाद अवरोध आने लगे. संयुक्त परिवार कि जिम्मेदारियों ने व्यवधान डाला . अभिव्यक्ति तो बाधित न हुई बस डायरियां भर्ती रहीं. नौकरी और घर के बीच प्रकाशन न हो सका. यदा कदा ही भेज पाती और प्रकाशित होता. " लेखन इनका सबसे प्रिय और पुरानी आदत है. आदर्श और सिद्धांत इन्हें  सबसे मूल्यवान लगते हैं , इनके साथ ये किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकती  है. गलत को सही दिशा का भान कराना इनकी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने. सच को लिखने में इनकी कलम संकोच नहीं करती.कथा-सागर, मेरा सरोकार,यथार्थ,मेरी सोच इनके प्रमुख व्यक्तिगत ब्लोग्स है .प्रस्तुत है इस अवसर पर इनकी एक कविता-

शब्दों से गर मिटती नफरत !


सोचा करती हूँ,
अपने जीवन में
इस जग में
कुछ ऐसा कर सकती।

इस धरती की कोख में
बीज प्यार का बो कर
उसमें खाद
ममता की देती।

वृक्ष मानवता के
उगा उगा कर
एक दिन मैं
इस धरती को भर देती।

पानी देती स्नेह , दया का
हवा , धूप होती करुणा की
ममता की बयार ही बहती
मधुमय इस जग को कर जाती।

उसमें फिर
पल्लव जो आते
खुशियों की बहार ही लाते।
शान्ति, प्रेम के मीठे फल से
धरती ये भर जाती।

उससे निकले बीज रोपती
दुनियाँ के
कोने कोने में
जग में फैली
नफरत की
अदृश्य खाई भर देती।

सद्भाव, दया की
निर्मल अमृत धारा से
मानव मन में बसे
कलुष सोच को धोती,
निर्मल सोच की लहरों से
सम्पूर्ण विश्व भर देती।

मानव बस मानव ही होते
इस जग में
शत्रु कभी न होते
इस धरा पर
जन्मे मानव
बन्धु-बन्धु ही कहते।

ऐसी सृष्टि भी होती
अपना जीवन जीते निर्भय
सबल औ' निर्बल सभी
कथा प्रेम की रचते।

शब्दों से गर
मिटती नफरत
कुछ ऐसा कर जाती
मानव के प्रति-
मानव में
प्रेम ही प्रेम भर जाती।
() () ()

8 comments:

rashmi ravija ने कहा… 14 मई 2010 को 5:32 pm बजे

सद्भाव, दया की
निर्मल अमृत धारा से
मानव मन में बसे
कलुष सोच को धोती,
निर्मल सोच की लहरों से
सम्पूर्ण विश्व भर देती।

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ है...एक बढ़िया सन्देश देती हुई...प्रेरणादायक रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा… 14 मई 2010 को 8:47 pm बजे

शब्द कभी बेकार नहीं जाते, आपके शब्द प्रभावशाली हैं, कुछ कर गुज़र जायेंगे

mala ने कहा… 15 मई 2010 को 10:23 am बजे

उम्दा प्रस्तुती ,आपको अनेक शुभकामनायें /

पूर्णिमा ने कहा… 15 मई 2010 को 10:26 am बजे

सुन्दर रचना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा… 19 मई 2010 को 4:39 pm बजे

शब्दों से गर
मिटती नफरत
कुछ ऐसा कर जाती
मानव के प्रति-
मानव में
प्रेम ही प्रेम भर जाती।

kash aisa ho pata....to aapko peace nobel award milta......:)

just joking Rekha jee!!

lekin kalam me aisee takat to hai hi, kuchh aisa kar deekhane kee, bas kalam ki dhaaak kuchh der se dikhti hai.........

umda prastuti!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा… 20 मई 2010 को 11:34 am बजे

शब्दों से गर
मिटती नफरत
कुछ ऐसा कर जाती
मानव के प्रति-
मानव में
प्रेम ही प्रेम भर जाती।

बहुत ही सुन्दर सन्देश देती पोस्ट!

दिगम्बर नासवा ने कहा… 20 मई 2010 को 2:28 pm बजे

Vah .. saral par gahra sandesh chipa hai rachna mein ...

Dr.Aditya Kumar ने कहा… 1 जून 2010 को 12:25 am बजे

मानव बस मानव ही होते
इस जग में
शत्रु कभी न होते
इस धरा पर
जन्मे मानव
बन्धु-बन्धु ही कहते
good

 
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