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अजित कुमार मिश्र एक समर्पित चिट्ठाकार के साथ-साथ संवेदन शील रचनाकार भी हैं . ये पोर्ट ब्लेयर  में डिफेन्स सर्विसेज में कार्यरत हैं ...इनकी कविताएँ इनके संवेदनशील हृदय का आईना है . प्रस्तुत है इस अवसर पर इनकी दो कविताएँ-
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आम आदमी



किसी के लिए बिछ जाते है,
झुककर धनुष बन जाते हैं।
झूठ मक्कारी का सहारा भी लेते हैं।
इन सब के बदले में कुछ सुविधाऐं लेते हैं।
पर जब कोई हमारे सामने झुककर।
जिंदगी की भीख मांगता है।
गिड़गिड़ता है, पैर पर जाता है।
सुविधायें नहीं जिंदगी मांगता है।
तब नियम-कानून की आड़ लेकर
कैसे उसके सामने अकड़ जाते हैं।
कौन है जो यह सब करता है।
किससे बताये सभी तो यही करते हैं
किस नाम से पुकारोगे इसे
हर पल भेष बदलता है।
कभी डाक्टर तो कभी मास्टर बन जाता है।
कभी वकील तो कभी पत्रकार बन जाता है।
कभी अधिकारी के भेष मे दिख जाता है।
तो कभी चपरासी भी बन जाता है।
इनके धनुष रुप में जो खड़ा नजर आता है।
वह आम आदमी कहलाता है।

जिन्दगी


जिन्दगी हर पल सिखाती रही, पर शायद हम सीख न सके
भुलाने की कोशिस भी बहुत की, पर हम बुरा वक्त भूल न सके


भूलते तो कैसे हम वक्त को, लोग हमको याद दिलाते रहे।
याद भी किया तो किसको, जो हमको हर पल भुलाते रहे।


हम लायक है या नालयक बस इसी सवाल को सुलझाते रहे।
लायक समझके किसी झिड़का, कुल लायक समझ गले लगाते रहे।
() () ()
पुन: परिकल्पना पर जाएँ 

5 comments:

Unknown ने कहा… 26 मई 2010 को 5:51 pm बजे

आम आदमी के बदलते रूप और पहलू को उजागर करती सशक्त कविता.....वही जीवन का सबक सिखाती जिन्दगी.......दोनों रचनाएं कलात्मकता के साथ मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है.......श्रेष्ठ रचनाओं हेतु शुभकामनाएं।

mala ने कहा… 26 मई 2010 को 8:12 pm बजे

सही व सटीक लगा..बहुत बढिया

गीतेश ने कहा… 26 मई 2010 को 8:13 pm बजे

मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रचना हेतु शुभकामनाएं।

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा… 26 मई 2010 को 11:03 pm बजे

आज की परिस्थितियां मन को कैसे झकझोर देती हैं। रोक नही पाते अपने आपको और चल जाती है लेखनी भाव को प्रकट करती हुई। सुन्दर!

Himanshu Pandey ने कहा… 27 मई 2010 को 10:50 pm बजे

प्रासंगिक कविता ! बेहतरीन अभिव्यक्ति ! आभार ।

 
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