अवध से परिकल्पना ब्लॉग उत्सव 2010 का संचालन और अवधी भाषा की बात न आवे तो साहित्यिक द्रष्टिकोण से एक बड़ी कमी होगी। अवधी साहित्य के सशक्त रचनाकार ओज के कवि कई पुस्तकों का संपादन कार्य कर चुके अवधी श्री 2008 के पुरस्कार से सम्मानित श्री अम्बरीश 'अम्बर' का साक्षात्कार लोकसंघर्ष पत्रिका के रणधीर सिंह सुमन ने....ब्लॉग उत्सव के लिए विशेष रूप से लिया.


जब 'श्री अम्बर' से यह प्रश्न पुछा गया कि आप अंतरजाल पर ब्लॉग लेखन करते हैं तो उन्होंने हल्की मुस्कराहट के साथ कहा, कई बार सोचा किन्तु कस्बाई प्रतिकूलताओं और स्वयं की व्यस्तता के कारण यह संभव नहीं हो पाया । हाँ, मैं ब्लॉग पढ़ता जरूर हूँ लेकिन लिखता नहीं हूँ और तकनीकी द्रष्टिकोण से मैं अंतरजाल की तमाम सारी प्रोसेस से अवगत नहीं हूँ लेकिन सीख रहा हूँ। और भविष्य में अपनी समस्त रचनाओं को ब्लॉग के माध्यम से प्रकाशित करूँगा।


प्रश्न१- ब्लॉग लेखन के सम्बन्ध में आप कुछ कहेंगे ?
ब्लॉग पर कुछ भी लिख दो ब्लॉग लेखन हो गया लेकिन पूरी दुनिया के लोग जब उस लेखन को पढ़ते हैं तो लिखने वाले की जिम्मेदारी होती है कि वह अर्थपूर्ण तरीके से गंभीरता से अपनी बात को रखे क्योंकि वर्चुअल दुनिया का प्रभाव मानव मस्तिस्क पर स्थायी होता है।


प्रश्न २- आप जब हिंदी ब्लॉग को पढ़ते हैं तो आप कैसा महसूस करते हैं ?
बहुत अच्छा लगता है। हिंदी ब्लॉग लेखन में बहुत कुछ गंभीर तथ्यपरक लिखा जा रहा है स्वागत योग्य है लेकिन कहीं-कहीं पर भारतीय मध्वर्ग की विशेषताएं भी परिलक्षित होती हैं जिसका कोई औचित्य नहीं है। कुछ ब्लॉग लेखन को पढके महसूस होता है की मध्यमवर्गीय समाज में जो तू-तू मैं-मैं चला करती है उसके भी प्रतिबिंब लेखन में दिखाई देते हैं।


प्रश्न 3- आप अवधी समाज की अगुवाई करते हैं , इस समाज की सबसे बड़ी विशेषता क्या है ?


अवधी समाज श्रमशील समाज है , कृषि से जुड़े होने के कारण उत्पादक है और सबसे बड़ी विशेषता है इनका स्वावलंबी होना . बाराबंकी निवासी होने के कारण मेरा सीधा सम्बन्ध किसानो से है ...मैं स्वयं एक किसान हूँ और पूरी तरह से जमीं से जुडा हूँ .


प्रश्न 4- ब्लोगोत्सव से जुड़े पाठकों को अपनी एक अवधी रचना सुनाएँ .


किसानों से संबंधित एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ -


हन गाँव गरीब के वासी भले हियाँ राम-कृपा से घटै न कबौ।
लगै पैर जमावे मा देर भले पर अंगद पाँव छूटे न कबौ।


सब एसु उपाय करौ मिलिकै अब सीमा पै बम्म फटै न कबौ।
बँटि जाय भले हंडिया-भुडुकी पर हिन्दुस्तान बटै न कबौ॥


जबले हरु हाथ मा है हमरे हियाँ कोऊ न भूखा व नंगा मिली।
मजबूत कुदारि अहै जबले हर खेतु मा पावनि गंगा मिली।


बलिदान व त्याग पै आउब तौ झगडा न फसाद न दंगा मिली।
यहि और का आंखि उठी जिहिंकै वहि छाती पै गड़ा तिरंगा मिली॥


गिने जात हैं सिंह के दांत हियाँ यहु कार्य तो खेल तमाशा मा है।
हम दूध बताशा न खाई भले पर सोंच हमारी अकाशा मा है।


तन देश के काम आवै कबौ हमरी पहिली अभिलाषा मा है।
मजबूत पहाडौ का फोरी सकी यहु जोर कुदारी के पाँसा मा है॥


जिहिके श्रम कै शुचि गंध भरि कण मा तरु पात मा है।
जिहिके मुखमंडल का ताकि कै नित आवत तेज प्रभात मा है।


उहिकै लिखि जाय कथा सगरी न सियाही समंदर सात मा है।
धरती जे सँवारे उहै धरती केर आतमा है परमातमा है ॥


धुरियान जवान किसान हमै तप योग के पंथ का राही लगै।
दुनिया की निगाह मा रंक भले हमरी तौ निगाह मा साही लगै।


जिहिसे लिखे वेद पुराण गए हमका उहै पेन व स्याही लगै।
हर कंधे व हाथ मा पैना लिहै वहु सीमा का वीर सिपाही लगै॥


जब जोर जुरै इनके श्रम कै तब सुन्दर विश्व कलेवा बनै।
जब आगिल अन्न का दान करे तब पावन पुन्य परेखा बनै।


पुखैया जो जोश भरै मन मा तब भारत देश के सेवा बनै।
जँह खून पसीना गिरे इनकै तँह देवा बने महादेव बनै॥
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